दुर्योधन
समाधान केन्द्र
आप किसी भी मुसीबत में हैं, किसी भी दुविधा में हैं, आपकी कोई भी समस्या है....। आप पर कोई भी संकट है या आप किसी को संकट में डालना चाहते हैं....। आपकी हर समस्या का इकलौता स्थान।
नोट: यह ज्योतिष केन्द्र नहीं, न ही यहां तन्त्र-मन्त्र द्वारा कोई समस्या हल की जाती है....।
सिर्फ दिमाग का इस्तेमाल करके आपकी समस्या को दूर किया जाता है।
बाइक पर बैठे उस साधारण कद-बुत के व्यक्ति ने लम्बे-चौड़े शीशे के गेट पर पीले पेंट से लिखे शब्दों को पढ़ा और फिर बाइक को साइड स्टैण्ड पर लगाकर सफेद पत्थर की बनी तीन सीढ़ियां चढ़कर गेट खोलते हुए भीतर प्रवेश कर गया। भीतर आते ही ए.सी. की ठण्डक ने उसके पसीने-पसीने हो रहे जिस्म को जैसे सुकून पहुंचाया।
लेकिन उसकी उड़ी रंगत, आंखों में छाई बदहवासी उस ठण्डक से दूर नहीं हुई....।
काफी बड़ा हॉल था वह जिसके अन्त में शीशे का एक और गेट लगा था।
हॉल में दोनों तरफ दीवारों की तरफ मुंह करके चार-चार जने अपने आगे रखे कम्प्यूटरों में उलझे हुए थे।
उन आठ जनों में चार लड़कियां थीं तथा चार लड़के थे।
आगंतुक ने थूक सटकी और फिर सफेद पत्थर के फर्श पर सीधा चलते हुए हॉल की सामने वाली दीवार में लगे गेट तक आ पहुंचा....।
आठों लड़के-लड़कियों की पीठ उसकी तरफ थी, और मजे की बात यह थी कि किसी ने उसे देखने के लिये अपनी गर्दन तक नहीं मोड़ी थी।
दरवाजे के दाईं तरफ एक कुर्सी पड़ी थी, जो उस वक्त खाली थी।
वह दरवाजे को धकेलते हुए भीतर प्रविष्ट हुआ तो एक अजीब-सी सुगन्ध उसके नथुनों में घुसकर उसके भीतर जा समाई।
काफी बड़ा ऑफिस था वह, जिसके फर्श पर वॉल-टू-वॉल सुर्ख रंग का कालीन बिछा था।
दाईं तरफ काफी बड़ी शीशे की ऑफिस टेबल थी, जिस पर रखे दो टेलीफोनों के अलावा एक पेन स्टैण्ड तथा एक साधारण-सी वॉकी के अलावा और कुछ भी नहीं था।
टेबल के पीछे चमड़ा मढ़ी ऊंची पुश्त वाली रिवाल्विंग चेयर पर करीब पैंतीस साल का चौड़े माथे वाला, अधपके बालों वाला व्यक्ति बैठा था, जिसने ग्रे रंग का थ्री-पीस सूट पहना हुआ था....। उसका व्यक्तित्व काफी प्रभावशाली नजर आ रहा था। उसकी कुर्सी के ऐन पीछे सिर के थोड़ा ऊपर दीवार पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था—
शकुनि
हां, यही नाम था उसका।
“आइये मिस्टर प्रभाकर....!” शकुनि होठों पर हल्की-सी मुस्कान लाते हुए बोला—“बैठिये।”
प्रभाकर टेबल के इस तरफ पड़ी चार कुर्सियों में से एक कुर्सी पर बैठ गया।
“अब बताइये, किसी ने देखा आपको....? यहां तक कि बाहर चपरासी भी नहीं था।”
“ज....जी हां....।”
“तो अब....?”
प्रभाकर ने जेब से पांच-पांच सौ के कुछ नोट निकालकर उसके सामने टेबल पर रख दिये।
“आ....पके पां....च हजार....।” वो थूक सटककर बोला— “आपने फोन पर कहा था कि आप क्लाइंट से सिर्फ समस्या पूछने का पांच हजार लेते हैं। उसके बाद समस्या के हिसाब से फीस लेते हैं।”
शकुनि ने नोट उठाकर उन्हें बिना गिने ही जेब में डाला और फिर टेबल की ड्राअर में से गोल्ड फ्लैक की डिब्बी और सिल्वर कलर का लाइटर निकालकर एक सिगरेट सुलगाई और डिब्बी और लाइटर को टेबल पर रखकर कश लगाने लगा।
प्रभाकर से उसने सिगरेट के लिये पूछा तक नहीं।
दो-तीन लम्बे कश लगाकर उसने पहलू बदला और निगाहें प्रभाकर के चेहरे पर जमाते हुए बोला—
“अब बताइये, क्या समस्या है आपकी....?”
“समस्या नहीं शकुनि साहब....! संकट आ पड़ा है मुझ पर....और अगर वह संकट दूर नहीं हुआ तो मैं जीते जी मर जाऊंगा। मेरा वंश खत्म हो जायेगा।”
“बात को लम्बा मत खींचिये मिस्टर प्रभाकर....! बताइये क्या संकट आ पड़ा है आप पर....?”
“मेरा एक ही बेटा है शकुनि साहब....!” प्रभाकर के चेहरे पर दर्द उभर आया—“और वो इस वक्त जेल में है।”
सुनकर जरा भी नहीं चौंका शकुनि....। हां, गम्भीर जरूर हो गया था।
उसने एक गहरा कश लगाया और नाक से धुएं की दोनाली छोड़ते हुए कुर्सी की पुश्त से पीठ लगा ली।
“क्या किया है आपके बेटे ने?”
“खून और रेप का इल्जाम है उस पर....।”
अब की बार शकुनि कुछ चौंका—“खून और रेप?”
“हां....।”
“किसका खून और रेप किया है आपके बेटे ने?”
“अब क्या कहूं आपसे शकुनि साहब! चढ़ती उम्र का मेरा बेटा....। बाइस साल का हो गया है। शरीर में गर्मी तो आनी ही थी। एक शादीशुदा औरत से आंख लड़ गई और वो जा पहुंचा उसके घर....। औरत भी तैयार थी। जैसे उसके पति से उसकी जरूरतें पूरी न होती हों। बस दोनों मिलते ही हो गये शुरू....।”
“फिर क्या....?”
“बदकिस्मती से ऊपर से उस औरत का पति आ पहुंचा और उसने दोनों को एक-दूसरे से लिपटे, वो सब करते देख लिया जो करने का हक उसका था। फिर क्या था, मेरे बेटे और उसमें जंग छिड़ गई, और वह आदमी मारा गया।”
“ओह।”
“अपने पति को मरते देख औरत ने शोर मचाना शुरू कर दिया और उसके शोर से आस-पड़ौस के लोग आ गये और उन्होंने मेरे बेटे को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया।”
“हुम्म....।” हल्के से हुंकार भरी शकुनि ने और कश लगाने लगा।
“मेरे बेटे को बचा लीजिये शकुनि साहब....! आपके पास तो हर समस्या का हल है। आप हर संकट के मोचक हैं। कोई ऐसा चक्कर चलाइये कि मेरे बेटे का बाल भी बांका न हो। आप खर्चे की चिन्ता मत कीजिये, जो कहेंगे वही दूंगा। बस आप उसे बचा लीजिये।”
“वो तो बचा लूंगा....।” टोटे को ऐश-ट्रे में झोंकते हुए शकुनि ने मुंह से धुआं उगला—“मगर आप पहले सच बतायें।”
“स....च?” हड़बड़ाया प्रभाकर।
“हां सच....। जो कहानी आपने बताई है, उसमें मेरे को बस इतनी ही सच्चाई नजर आई है कि उसने खून किया है और रेप किया है।”
“स....सब कुछ सच बताया है मैंने....। मेरे बेटे ने यही बताया था मेरे को।”
“तो फिर आपके बेटे ने आपको झूठी कहानी बताई है।”
“यह मेरे को नहीं पता। आप बस उसे आजाद कराइये....।”
“इंस्पेक्टर को खरीदने की कोशिश की होगी आपने....?”
“वो तो करनी ही थी। मैंने उसे जितना मर्जी मुंह फाड़ने की छूट दे दी थी, लेकिन उसने उल्टे मुझे ही धमका दिया कि अगर मैंने दोबारा उसे रिश्वत की ऑफर दी तो वह मेरे को भी अन्दर कर देगा।”
“मैं जानता हूं उसे....। इंस्पेक्टर आकाश है उसका नाम....। बहुत ही ईमानदार है वो। वो किसी भी कीमत पर नहीं बिकने वाला....।”
“त....तो....।”
“तो यह कि आपके बेटे को बरी कराना पड़ेगा। क्योंकि आकाश तो उसे कोर्ट में पेश करके ही मानेगा।”
“तो कराइये....। म....मुझे बस मेरा बेटा चाहिये और....।”
“एक करोड़....।”
“क्....या....?” हड़बड़ा उठा प्रभाकर।
“आपके बेटे की कीमत मांग रहा हूं। उसे बरी कराने की पूरी जिम्मेदारी मेरी। तीन दिन में आपका बेटा आपके पास होगा।”
“दूंगा....। मैं....मैं एक करोड़ दूंगा।”
“पचास लाख का चैक अभी दे दीजिये....। बाकी के पचास लाख आपके बेटे के बरी हो जाने के बाद लूंगा....।”
प्रभाकर ने देर नहीं लगाई।
तुरन्त उसने कोट की भीतरी जेब से चैक बुक निकाली और पचास लाख का चैक काटकर उसे दे दिया।
“थैंक्यू....।” चैक को तह कर टेबल पर रखते हुए मुस्कुराया शकुनि—“क्या नाम बताया आपने अपने बेटे का?”
“मनोज....मनोज प्रभाकर....।”
¶¶
admin –
Aliquam fringilla euismod risus ac bibendum. Sed sit amet sem varius ante feugiat lacinia. Nunc ipsum nulla, vulputate ut venenatis vitae, malesuada ut mi. Quisque iaculis, dui congue placerat pretium, augue erat accumsan lacus