दुल्हन मांगे दहेज
मेरे प्यारे पापा,
सादर नमस्ते!
अच्छी तरह जानती हूं कि इस पत्र को पढ़कर आपके दिल को धक्का पहुंचेगा, परन्तु फिर भी आपकी यह जालिम और बेरहम बेटी लिखने पर मजबूर हो गई है, सच पापा—आपकी यह नन्हीं बेटी बहुत मजबूर है—जो कुछ हो रहा है वह शायद आपकी बेटी के दुर्भाग्य के अलावा और कुछ नहीं है, वरना—आपने भला क्या कमी छोड़ी थी—खूब धूमधाम से मेरी शादी की—दहेज में वे सब चीजें तक दीं, जो आपकी हैसियत से बाहर थीं!
देखने-सुनने में रिटायर्ड जूडिशियल मजिस्ट्रेट श्री बिशम्बर गुप्ता का परिवार सारे बुलन्दशहर के लिए एक आदर्श है—जिधर निकल जाएं लोग इनके सम्मान में बिछ-बिछ जाते हैं और देखने-सुनने में हेमन्त भी योग्य हैं, छोटी ही सही, मगर 'लॉक मैन्युफैक्चरिंग' नामक फैक्टरी के मालिक हैं, परन्तु यह जानकर आपको दु:ख होगा पापा कि वास्तव में ये लोग वैसे नहीं हैं, जैसे दिखते हैं!
पिछले करीब एक महीने से ये लोग मुझ पर आपसे बीस हजार रुपये मांगने के लिए दबाव डाल रहे हैं—मैं टालती आ रही थी, क्योंकि आपकी हालत से अनजान नहीं हूं—जानती हूं कि इन जालिमों की मांग पूरी करना आपके लिए असंभव की सीमा तक कठिन है, मगर...ये लोग बात-बात पर मुझे ताने मारते हैं!
तरह-तरह से मानसिक यातनाएं दे रहे हैं। समझ में नहीं आ रहा है पापा कि मैं क्या करूं—हेमन्त कहता है कि अगर उसे रुपये नहीं मिले तो मुझे तलाक दे देगा—सोचती हूं कि खुद को फांसी लगा लूं—कोशिश की, लेकिन आपका ख्याल आने पर सफल न हो सकी—दिल में ख्याल उठे कि आप मुझे कितना प्यार करते हैं पापा, मेरी मृत्यु से आप पर क्या गुजरेगी—बस, मरने का साहस टूट गया—आपके फोटो के सामने बैठी बिलख-बिलखकर रोती रही मैं!
मैं चार तारीख को आपके पास आ रही हूं—हालांकि जानती हूं शादी के कर्ज से अभी तक आपका बाल-बाल बिंधा पड़ा है, इस मांग को पूरा करने के लिए मेरे पापा की खाल तक बिक सकती है, परन्तु फिर भी, यह लिखने पर बहुत विवश हूं पापा कि जहां से भी हो, जैसे भी हो—बीस हजार का इंतजाम करके रखना!
और हां, इन लोगों ने मुझे धमकी दी है कि अगर इस बारे में आपने इनसे कोई बात की तो मेरी खैर नहीं है—अगर आप मेरा अच्छा चाहते हैं तो इस बारे में इनसे जिक्र न कीजिएगा—बाकी बातें मिलने पर बता सकूंगी।
आपकी बेटी—सुचि।
दीनदयाल ने कम-से-कम बीसवीं बार अपनी बेटी के पत्र को पढ़ा और इस बार भी उस पर वही प्रतिक्रिया हुई, जो उन्नीस बार पहले हो चुकी थी—लगा कि कोई फौलादी शिकंजा उसके दिल को जोर से भींच रहा है!
असहनीय पीड़ा को सहने के प्रयास में जबड़े कस गए उसके, आंखें मिच गईं और उनसे फूट पड़ीं गर्म पानी की नदियां।
दर्द सहा न जा रहा था।
पीड़ा के उसी सैलाब से ग्रस्त सामने बैठी पार्वती ने जब देखा कि पति ने अपने दांतों से होंठ जख्मी कर लिए हैं तो कराह उठी—"बस कीजिए मनोज के पापा, बस कीजिए—दिल फटा जा रहा है।"
दीनदयाल कुछ बोला नहीं, शून्य में घूरते हुए उसका चेहरा एकाएक चमकने लगा—होंठ से खून रिस रहा था और जबड़ों के मसल्स फूलने-पिचकने लगे—जाने वह क्या सोच रहा था कि गुस्से की ज्यादती के कारण सारा शरीर कांपने लगा—मुट्ठियां भिंचती चली गईं, साथ ही बेटी का पत्र भी—एकाएक उसके मुंह से गुर्राहट निकली—"मैं बिशम्बर गुप्ता को कच्चा चबा जाऊंगा, खून कर दूंगा उसका।"
पार्वती घबरा गई, बोली—"यह क्या कह रहे हैं आप, होश में आइए।"
"ऐसे कुत्तों का यही इलाज है, मनोज की मां—और फिर इन हालातों में एक लड़की का गरीब बाप और कर भी क्या सकता है—दहेज के इन लोभी भेड़ियों की बोटी-बोटी काटकर चील-कौवों के सामने डाल देनी चाहिए।"
"मैं आपके हाथ जोड़ती हूं—यह हमारी बेटा का मामला है, अगर जोश में आपने कोई उल्टा-सीधा कदम उठा दिया तो अंजाम हमारी सुचि को भुगतना होगा, जाने वे उसके साथ क्या सुलूक करें?"
"क्या करेंगे वे कमीने—क्या वे हमारी बेटी को मार डालेंगे?"
"आए दिन बहुएं जलकर मर रही हैं, ऐसा करने वालों का ये समाज और कानून भला क्या बिगाड़ लेता है?"
दीनदयाल का सारा जिस्म पसीने-पसीने हो गया, बूढ़ी आंखों ने आग की लपटों से घिर बेटी का जिस्म देखा तो चीख पड़ीं—"न-नहीं—ये नहीं हो सकता, मनोज की मां, वे ऐसा नहीं कर सकते।"
"दहेज के भूखे दरिंदे कुछ भी कर सकते हैं।"
सारा क्रोध, सारी उत्तेजना जाने कहां काफूर हो गई—बड़े ही मर्मांतक अंदाज में दीनदयाल कह उठा—"वे लोग ऐसे लगते तो नहीं थे, पार्वती, सारे बुलंदशहर में यह बात कहावत की तरह प्रसिद्ध है कि अपनी सर्विस के जमाने में बिशम्बर गुप्ता ने कभी एक पैसे की रिश्वत नहीं ली।"
"भ्रष्ट आदमी पद और रुतबे में जितना बड़ा होता है उसके चेहरे पर शराफत और ईमानदारी का उतना ही साफ-सुथरा फेसमास्क होता है, मनोज के पापा।" पार्वती कहती चली गई—"हम लोगों के अलावा यह भी किसको पता होगा कि बिशम्बर गुप्ता दहेज के लोभी हैं—बात खुलने पर भी लोग शायद यकीन न कर सकें।"
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