क्रोकोडायल
दिनेश ठाकूर
मौत मेरे पीछे थी।
और मैं जान छोड़कर बेतहाशा भाग रही थी।
इस समय रात के करीब दो बज रहे थे। दूर-दूर तक विधवा की मांग की तरह सूनी सड़क और उस पर सर्प के समान कुण्डली मारे स्याह अन्धकार। उस सड़क पर लगातार भागते रहने के कारण मेरी सांसें बुरी तरह फूल चुकी थीं।
मेरे इस प्रकार भागने का कारण वो चारों खतरनाक और खौफनाक शक्ल वाले गुण्डे थे, जो इस समय यमदूत बने मेरा पीछा कर रहे थे।
शक्ल-सूरत से वे चारों छंटे हुए बदमाश लग रहे थे।
उनमें से एक के हाथ में पिस्तौल था और तीन के हाथों में लम्बे फल वाले रामपुरिये लपलपा रहे थे।
मैं उनसे बचने के लिये काफी देर से जान छोड़कर भाग रही थी, लेकिन अब मेरी हिम्मत जवाब देने लगी थी। दम फूल गया था और लग रहा था कि मैं अगला कदम उठाते ही लड़खड़ाकर गिर पडूंगी। सड़क के किनारे कुछ-कुछ दूरी पर दरख्तों की कतार थी। कुछ सोचकर मैं एक पेड़ की ओट में जाकर ठहर गई और तने से पीठ टिकाकर बुरी तरह हांफने लगी। साथ ही मैंने अपने आसपास नजर डाली।
सड़क के दोनों तरफ विशाल बंगले बने हुए थे। मेरे निकटतम बंगले का गेट मुझसे लगभग बीस गज के फासले पर रहा होगा।
मैं पेड़ के तने से टेक लगाये उस गेट की तरफ देखने लगी। साथ ही मैं बार-बार पीछे मुड़कर भी देख लेती थी।
दौड़ते हुए कदमों की आवाज करीब आती जा रही थी।
कुछ और करीब आकर वह आवाजें रुक गयीं।
मैंने तने के पीछे से झांककर देखा।
वो चारों गुण्डे एक जगह ठहरकर इधर-उधर देख रहे थे।
“वह रही, उस पेड़ के पीछे....पकड़ो....।” सन्नाटे में उनमें से किसी की गुर्राहटपूर्ण आवाज उभरी। हालांकि मैंने अपनी सांस तक रोक ली थी, मगर फिर भी न जाने कैसे उस कमबख्त ने मुझे देख लिया।
बहरहाल अब मैं वहां नहीं रुक सकती थी। अतः मैंने तुरन्त वृक्ष की आड़ से निकलकर निकटतम बंगले के गेट की तरफ दौड़ लगा दी।
वो चारों पुनः तीर की तरह मेरी तरफ लपके।
“धांय!”
मैं बंगले के गेट से अभी चंद गज दूर थी कि वातावरण फायर की आवाज से थर्रा उठा।
ये गोली उसी गुण्डे के रिवॉल्वर से चली थी, जो मेरे कदमों के पास ढेर सारी मिट्टी उधेड़ गई थी।
गेट के करीब पहुंचकर एकाएक मैं लड़खड़ाकर गिर पड़ी। फिर मैं उठने की कोशिश कर रही थी कि वो चारों गुण्डे मेरे सर पर पहुंच गये।
अगले ही पल उनमें से दो ने मुझे दबोच लिया।
“बचाओ....बचाओ!”
मेरी चीख सन्नाटे में दूर-दूर तक गूंजती चली गई।
फायर और मेरी चीखों की आवाजें सुनकर करीबी बंगले के गेट से दो आदमी निकल आये।
उनमें से एक के पास ऑटोमेटिक राइफल थी।
उन्हें परिस्थिति को समझने में देर न लगी और राइफल वाले ने तुरन्त हवाई फायर कर दिया।
मैं और जोर-जोर से चीखने लगी।
एक गुण्डे ने बौखलाकर मेरे ऊपर चाकू चला दिया। चाकू मेरे बायें बाजू पर लगा। मेरे मुंह से खौफनाक चीख निकल गयी।
यह मेरा सौभाग्य ही था कि चाकू बाजू में पेवस्त होने के बजाय मेरे बाजू पर हल्का-सा जख्म बनाता हुआ और मेरी बगल से कमीज को चीरता हुआ निकल गया था।
यह मेरी उस खौफनाक चीख का ही प्रभाव था कि बंगले से निकला व्यक्ति चीखा—“ऐ....! क्या हो रहा है? खबरदार!”
साथ ही उसने उन गुण्डों के कदमों के करीब फायर झोंक दिये।
“सब गड़बड़ हो गया है।” एक गुण्डा चीखा—“भागो।”
चारों बौखलाए, झुंझलाए। जिस तरफ से आए थे, उसी तरफ भाग लिए।
मैं अपना जख्मी बाजू थामे अपने स्थान पर बैठी रही।
बंगले से निकलने वाले दोनों आदमी दौड़ते हुए मेरे करीब पहुंचे।
“कौन हो तुम? और ये लोग कौन थे?” उनमें से एक ने पूछा।
“मैं एक टूरिस्ट हूं।” मैंने कम्पित स्वर में कहा—“अभी कुछ देर पहले मैं एक नाइट क्लब से निकली ही थी कि ये लोग हथियारों के बल पर मुझे जबरदस्ती एक कार में डालकर इस तरफ ले आये। फिर यहां से कुछ फासले पर उन्होंने कार रोक ली थी।”
“क्या चाहते थे ये लोग तुमसे?”
“इनकी बातों से मैंने अनुमान लगाया कि ये लोग मेरी इज्जत लूटकर मेरी हत्या कर देना चाहते थे। फिर शायद किसी सुनसान जगह पर मेरी लाश फैंककर चले जाते।”
“मगर तुम उनके चंगुल से छूटीं कैसे?” राइफलधारी ने पूछा।
“मैंने बताया न, पास के चौराहे पर उन्होंने कार रोकी थी, शायद किसी सुरक्षित दिशा का चुनाव करना चाहते थे। तभी उनकी लापरवाही का फायदा उठाकर मुझे कार से निकल भागने का मौका मिल गया। लेकिन यहां पहुंचकर उन्होंने मुझे फिर दबोच लिया था। जब मैंने उनका विरोध किया और अपनी सहायता के लिये चिल्लाना शुरू किया तो उनमें से एक ने मुझ पर चाकू का वार कर दिया। यह देखिए, मेरा हाथ जख्मी है और खून भी बह रहा है।”
कहकर मैंने अपना बाजू उसके सामने कर दिया। मेरे बाजू से अभी तक खून रिस रहा था।
उसकी दृष्टि जैसे ही वहां पड़ी, मैंने उसकी आंखों में एक विशेष प्रकार की चमक कौंधते देखी।
वह मेरा हाथ थामकर मुझे उठाता हुआ सहानुभूतिपूर्ण स्वर में बोला—
“घबराओ मत! अब तुम्हें कोई खतरा नहीं है।”
उधर वह अपने साथ आये दूसरे व्यक्ति को सम्बोधित करके बोला—“गिरधारी! इसे अन्दर लेकर चलो।”
मैं यही चाहती थी।
गिरधारी नामक उस व्यक्ति ने मुझे सहारा दिया। एक तरफ से मेरा हाथ राइफल वाले ने थाम ही रखा था।
वो लोग मुझे अंदर ले आये। राइफल वाला चलते समय इस बात का विशेष ध्यान रख रहा था कि मेरे शरीर का ज्यादा से ज्यादा भाग उसके शरीर से टच करता रहे।
मैंने भी जानबूझकर अपने शरीर का ज्यादा भार उसी पर डाल रखा था।
इस समय मैं एक डरी, सहमी और भयभीत लड़की का सफल अभिनय कर रही थी।
हालांकि मेहरबान दोस्त जानते ही हैं कि डरना या भयभीत होना तो मैंने कभी सीखा ही नहीं। मेरा तो काम ही हरदम मौत से आंख मिचैली खेलना है।
समझ गये ना आप कि मैं कौन हूं?
जी हां....मैं आपकी जानी-पहचानी, आपकी चहेती रीमा हूं।
रीमा भारती! भारत की सर्वाधिक महत्वपूर्ण जासूसी संस्था आई.एस.सी. यानी इन्डियन सीक्रेट कोर की नम्बर वन एजेन्ट।
वो जिसे अण्डरवर्ल्ड के आकाओं ने बुलेट से ज्यादा तेज और तलवार की धार से ज्यादा पैनी बताया है। बड़े-बड़े माफिया डॉन ने मुझे कम्प्यूटर से अधिक गतिमान और लोमड़ी जैसी चालाक कहा है। जिसे जुर्म के महन्तों और देश के गद्दारों ने चट्टान की तरह सख्त और नागिन की तरह जहरीली के नाम से नवाजा है, तो विदेशी जासूसों ने मुझे क्वीन ऑफ डेथ के नाम से अलंकृत किया है। जबकि मेरे अपने बारे में मेरा विचार है कि मैं दोस्तों के लिये दोस्त हूं, तो दुश्मनों के लिये काल हूं।
इन सबके साथ-साथ मैं अपनी मां भारती की वो अल्हड़ और शरारती बेटी हूं, जो अपनी मां के लिये कुछ भी कर सकती है।
मैंने अपने शरीर के लहू के आखिरी कतरे तक को अपने देश के प्रति समर्पित करने के लिये सदैव तैयार रखा है।
और यह तो आप भली-भांति जानते ही हैं कि एक जासूस की जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं होता। न जाने कब कहां से कोई गोली आए और उसकी जिन्दगी का खात्मा कर दे। इसलिये मैं अपने खतरनाक मिशन के दौरान भी अपने मनोरंजन के कुछ क्षण चुरा लेती हूं।
जी हां....मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मैं फ्री सैक्स में विश्वास रखती हूं। और अपने हाहाकारी जिस्म के बल पर ही मैं विषम परिस्थितियों पर काबू पाने में सफल हो जाती हूं।
साम, दाम, दण्ड, भेद—किसी भी नीति से मैं अपना काम निकालने का हुनर जानती हूं।
मौत से डरना तो मैंने सीखा ही नहीं, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि मैं खुद को आंख मीचकर मौत के मुंह में झोंक देने के लिये तैयार रहती हूं। मरना तो सभी ने है, मगर मूर्ख लोग ही अंधी मौत मरते हैं। और आपके सपनों की रानी को बेबसी और गुमनामी की मौत मरना गंवारा नहीं है।
मैं यह चाहती हूं कि जब भी मेरी मौत हो....वह एक शानदार मौत हो, मेरे प्राण मां भारती के लिये निकलें और उसकी गोद में निकलें।
शायद मैं भावुकता में कुछ ज्यादा ही बह गयी हूं इसलिये आइये उसी मंजर में चलें, जब मैं एक डरी, सहमी और भयभीत लड़की का अभिनय कर रही थी।
जाहिर है, मैं यह सब एक विशेष योजना के तहत कर रही थी।
¶¶
मैं अपने चीफ के केबिन का स्प्रिंग युक्त दरवाजा धकेलकर भीतर दाखिल हुई।
मेरा भारी-भरकम चीफ खुराना ऑफिस मेज के पीछे रिवाल्विंग चेयर पर मौजूद था। वह मेज पर झुका किसी जरूरी फाइल का तन्मयता के साथ अध्ययन कर रहा था। उसके चेहरे पर सदैव की भांति गम्भीरता कुण्डली मारे बैठी थी। उसके दायें हाथ की दो उंगलियों के बीच सुलगा हुआ सिगार दबा हुआ था। सिगार से निकलकर धुएं की लकीर सांप की तरह बल खाती हुई छत की तरफ जा रही थी।
“गुड मार्निंग सर!” मैंने मेज की तरफ बढ़ते हुए खुराना का अभिवादन किया।
“गुड मार्निंग।” वह फाइल पर नजरें टिकाये-टिकाये मेरे अभिवादन का जवाब देकर बोला—“बैठो रीमा।”
मैंने खुराना के सामने कुर्सी संभाल ली।
खुराना फाइल का अध्ययन करता रहा।
कुछ पल यूं ही गुजर गये।
खुराना ने सिगार का लंबा कश लिया और ढेर सारा धुआं मुंह से उगल दिया, फिर फाइल बंद करके मेज के एक सिरे पर सरकाकर सीधा हुआ। तदुपरांत वह मेरे सुर्ख सफेद चेहरे पर नजरें फिक्स करता हुआ बोला—“मिशन से कब वापस लौटीं?”
“कल देर रात।”
मेहरबान दोस्त जानते हैं कि मेरा चीफ मुझे एक-से-एक खतरनाक तथा इन्टरनेशनल लेवल के केस सौंपता है। जिसमें हर पल जान जाने का खतरा कच्चे धागे में बंधी तलवार की तरह सिर पर लटका रहता है। इस बार भी उसने मुझे ऐसा ही एक मिशन सौंपा था।
“क्या रहा?”
“कामयाबी।”
“वैरी गुड! मिशन की रिपोर्ट दो।”
मैंने खुराना को संक्षिप्त में रिपोर्ट दे दी।
“ये मिशन बेहद गम्भीर था रीमा। इसका सीधा सम्बन्ध देश की आन्तरिक सुरक्षा से था। इस मिशन को लेकर ना सिर्फ गृह मंत्रालय, बल्कि रक्षा मंत्रालय भी चिंतित था। तुम्हारे अलावा दूसरा कोई भी आई.एस.सी. का एजेन्ट कामयाबी हासिल नहीं कर सकता था। तुमने एक बहुत बड़े काम को अंजाम दिया है। एक बहुत बड़ा हादसा टल गया। मेरी तरफ से कामयाबी के लिये बधाई हो रीमा।” एकाएक उसका लहजा खुशी से भर उठा।
“थैंक्यू सर।”
“चूंकि तुम पूरे बीस दिन बाद मिशन से वापस लौटी हो इसलिये तुम्हें कुछ दिन रेस्ट करना चाहिये था। ऑफिस में आने की क्या जरूरत थी?”
“आपको मिशन की रिपोर्ट जो देनी थी।”
“रिपोर्ट तो तुम फोन पर भी दे सकती थीं।”
“ये ठीक नहीं था इसलिये मैंने आपके ऑफिस में आकर रिपोर्ट देना ही उचित समझा।”
उसने प्रशंसनीय निगाहों से मेरी तरफ देखा।
“म....मैं आपको एक वादा करना चाहती हूं सर।” मैं हिचकिचाई।
“हिचकिचा क्यों रही हो! तुम्हें जो कुछ कहना हो, साफ-साफ कहो।” उसकी सवालिया निगाहें मेरे चेहरे पर आ टिकीं।
“दरअसल बात ये है सर कि पिछले एक साल से मैं लगातार मिशनों के सिलसिले में इधर से उधर भागती रही हूं। मुझे सांस लेने की फुरसत नहीं मिली। दिमाग जैसे जाम होकर रह गया। नये मिशन पर काम करने से पहले....।”
“तुम फ्रेश होना चाहती हो। मेरा मतलब है कि तुम बगैर किसी तनाव के घूमना-फिरना चाहती हो, ताकि तुम नये जोश, नई एनर्जी और नये उत्साह के साथ काम कर सको।”
“यस सर।”
“और इस सबके लिये तुम्हें छुट्टियों की जरूरत पड़ेगी।”
मैं मुस्कराई।
“तुम्हारे मुम्बई पहुंचने से पहले ही मैं तुम्हारी बीस दिन की छुट्टियां मंजूर कर चुका हूं। चूंकि इस बार तुम एक सबसे अहम मिशन में कामयाबी हासिल करके लौटी हो, इसलिये तुम्हारा सारा खर्च आई.एस.सी. उठायेगी।”
“थैंक्यू सर।”
“लेकिन तुम छुट्टियां बिताने के लिये कहां जाओगी?”
“कहीं भी?”
“कहीं भी तो कोई जगह नहीं है।”
मैं झेंपकर रह गयी।
खुराना की उंगलियों के बीच का सिगार बुझ चुका था। उसने सिगार सुलगाया और कश लेकर बोला—“मैं जगह के बारे में इसलिये पूछ रहा हूं, अगर ऐसा ही कोई मिशन गृह मंत्रालय आई.एस.सी को सौंप दे जिसे सिर्फ तुम ही पूरा कर सकती हो तो मैं तुमसे सम्पर्क स्थापित कर सकूं।”
मैं मन-ही-मन झुंझलायी।
मगर मैंने अपने चेहरे पर इस तरह का कोई भाव तक नहीं उभरने दिया था, जिससे खुराना को नागवार गुजरता।
“यानि वहां भी मिशन मेरे पीछे भूत की तरह लग जायेगा।” मैंने पहलू बदला।
“मजबूरी है।” सिगार का कश लेकर बोला वह—“तुम तो जानती हो कि हमारा सम्बन्ध गृह मंत्रालय से है। अतः हम उसका आदेश मानने के लिये विवश हैं। इसलिये मुझे तुम्हारे बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिये। बताओ, कहां जाना चाहती हो?”
“चेन्नई!”
“च....चेन्नई!” उसके होंठों से निकला—“मैं तो सोच रहा था कि तुम न्यूयार्क, लन्दन, पेरिस या टोकियो जैसे शहर में जाकर छुट्टियां बिताओगी, मगर तुम्हारा मन चेन्नई में छुट्टियां बिताने का है तो मुझे कोई ऐतराज नहीं है। तुम चेन्नई कब रवाना होना चाहती हो?”
“आज ही।”
“ओ.के.।” वह सिगार का एक आखिरी कश लेकर उसे ऐशट्रे में मसलता हुआ बोला—“तुम अपनी तैयारी करो और एयरपोर्ट पहुंच जाओ। वहां तुम्हें चैहान मिलेगा। वो तुम्हें टिकट सौंप देगा।”
“ठीक है सर!”
“और कुछ?”
“आपकी दुआएं चाहिये।”
“मेरी दुआएं तो हर पल आई.एस.सी. के एजेन्टों के साथ होती हैं चूंकि आई.एस.सी. नाम की संस्था मेरे एक परिवार की तरह है और मैं इस परिवार का मुखिया हूं। अतः मुझे अपने परिवार के सदस्यों का ध्यान रखना पड़ता है।”
मेरा मन खुराना के प्रति श्रद्धा से भर गया।
“अब तुम जाकर तैयारी करो रीमा।”
मैंने एक झटके से कुर्सी छोड़ दी।
¶¶
admin –
Aliquam fringilla euismod risus ac bibendum. Sed sit amet sem varius ante feugiat lacinia. Nunc ipsum nulla, vulputate ut venenatis vitae, malesuada ut mi. Quisque iaculis, dui congue placerat pretium, augue erat accumsan lacus