चिकनी मछली
रीमा भारती
"व्हाट!"
मैं चिहुंकी।
"यस मैडम।" ट्रैफिक हवलदार ने बताया, "पुलिस ने इसके साथ-साथ सारे रास्ते बन्द कर रखे हैं जो उधर से जाते हैं। प्लीज, आप माल रोड से निकल जाइए।"
"लेकिन......।"
"समझने की कोशिश करें मैडम। मैं आपको पहले भी बता चुका हूँ, पूरी एक बिल्डिंग आतंकवादियों ने अपने कब्जे में कर रखी है, एस०पी० सिटी के स्पष्ट आदेश हैं कि कोई उधर से न गुजरे।"
मेरा चेहरा भभक उठा।
मेरी नाजुक, कलात्मक अंगुलियों की पकड़ स्टेयरिंग व्हील पर और कस गईं।
जैसा कि मेरे मेहरबान पाठक जानते ही हैं कि जब मैं किसी देशद्रोही और अमन के दुश्मन के किसी नापाक इरादे के बारे में सुनती हूँ तो मेरा लहू खौलते लावे में परिवर्तित हो जाया करता है। कनपटियां सुलगने लगती हैं। मेरी आत्मा एक घायल नागिन की मानिन्द उनको उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए फन उठाने लगती है।
मैं—— यानि रीमा भारती!
आपके सपनों की रानी! वो खूबसूरत बला, जिसके सामने मौत के सौदागर तो क्या स्वयं मौत तक पनाह मांगा करती है। भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण जासूसी संस्था आई०एस० सी० की नम्बर वन एजेन्ट ... मां भारती की लाड़ली किन्तु उद्दण्ड बेटी। अपने परिचय में और क्या लिखूं? फिलहाल आपके स्नेह की इस पात्रा को अपने परिचय के लिए अपनी तारीफों के पुल बांधने की आंवश्यकता नहीं पड़ती। मेरा महज नाम ही जवां दिलों की धड़कनों में वृद्धि कर देता है।
मेरे मेहरबान दोस्त जानते ही हैं कि मैं फ्री सेक्स में विश्वास करने वाली हसीना हूं। मौत के क्रूर पंजों में फंसी होने के बावजूद मौज-मस्ती के क्षण चुरा लेना मेरी फितरत में शामिल है।
खैर!
उसी दिन मैंने छुट्टी मंजूर कराई थी और अपने ऑफिस से घर लौट रही थी।
रास्ते में ही चौराहे पर एक ट्रैफिक हवलदार ने मुझे रोक दिया तथा आगे रास्ते के बन्द होने और एक बिल्डिंग के आंतकवादियों के कब्जे में होने की बात बताई।
उसे सुनकर मैं चिहुंकी ही नहीं, पल भर के लिए सन्नाटे में भी रह गई।
और फिर....।
अगले ही पल मेरा लहू लावे की मानिन्द खौलने लगा। आंखों में चिंगारियां उठने लगीं। संगमरमरी मुखड़े की हर मांस-पेशी तनाव के कारण कठोर होती चली गई।
हवलदार मेरी हालत देखकर चकित रह गया।
"मैडम.....!" उसने मुझे पुकारा।
उसकी आवाज सुनकर मैं क्रोध और जज्बातों की तेज आँधी से बाहर निकली—— "ह...हाँ।"
"क्या सोचने लगीं आप?"
"कुछ नहीं।"
"तो अपने घर जाइए।"
"नहीं हवलदार साहब।" मैंने भयंकर निर्णयात्मक लहजे में कहा, "मैं वहाँ जाना चाहती हूँ जहाँ बिल्डिंग को उन आतंकवादियों ने घेर रखा है।"
"क्या?" वो बुरी तरह उछल पड़ा। बेसाख्ता ही उसके होंठों से निकला—— "मरना चाहती हैं क्या?".
"हां, मुझे उधर ही जाना है। सड़क पर से प्रतिरोधों को हटाकर मेरी कार के लिए रास्ता बना दीजिए।"
"ऐ मैडम!" एकाएक ही हवलदार व्यंग्यपूर्ण लहजे में कह उठा, "उधर कोई एक्शन फिल्म की शूटिंग नहीं हो रही है। सचमुच की गोलियां चलेंगी। एक भी गोली आपके बदन में घुस गई तो सीधे स्वर्ग में पहुंच जाएंगी। जाइए, दूसरे रास्ते से निकल जाइए।"
"शटअप हवलदार!" मैं एकाएक गुस्से से बरस पड़ी, "मैं जो कहती हूँ, वो करो। और अपनी जुबान को बन्द रखो।"
"ऐ, ऊँची मत बोलो मेमसाहब! आप....।"
"मैंने कहा ना, चुप रहो।" मैंने फुर्ती से अपना आई-कार्ड निकालकर उसके हाथ में रख दिया।
दरअसल उस वक्त और समय बर्बाद करने का मेरा जरा भी इरादा नहीं था। इसी कारण मैंने उससे किसी भी प्रकार की बातें करने के बजाए सीधा आई-कार्ड उसके हाथ में थमा दिया।
आई-कार्ड पढ़ते ही वो उछल पड़ा।
"स...सॉरी मैडम।" उसने हड़बड़ाकर सैल्यूट ठोका।
वो इस कदर घबरा गया था कि घबराहट के कारण सलाम ठोकते वक्त उसे हाथ में थमे मेरे आई-कार्ड को संभालने तक का होश न रहा। वो सड़क पर जा गिरा।
मेरी कठोर नजरों को दखकर उसने तुरन्त झुककर वो आई-कार्ड उठाकर, बाइज्जत मुझे दिया।
"जाओ, मेरा रास्ता साफ करो।" मैंने आई-कार्ड लेते हुए कठोर स्वर में आदेश दिया।
"यस मैडम।" वो मशीनी अंदाज में सड़क पर लगे प्रतिरोधों की तरफ लपका।
उसे रास्ता बनाते देखकर मैंने कार स्टार्ट की और गीयर बदल दिया।
एक्सीलेटर पर दबाव पड़ते ही कार आगे खिसकने लगी।
¶¶
जब मैं वहां पहुँची तो देखा पुलिस ने एक तिमंजिली इमारत को चारों तरफ से घेर रखा था।
इमारत के चारों तरफ किसी भी तरीके का आदमी, सिवाय पुलिस के मुझे नजर न आया। मैं इकलौती शख्स थी जो एक सिविलियन वेशभूषा में थी।
"तुम सब लोगों को चारों तरफ से घेर लिया गया है।" एस०पी० अपनी कार पर से खड़ा हुआ माइक पर उन्हें चेतावनी दिए जा रहा था, "अब तुम लोगों का बच निकलना नामुमकिन है। अगर तुम लोग अपनी खैरियत चाहते हो तो खुद को हमारे हवाले कर दो।"
"एस०पी०!" एक खूंखार स्वर वातावरण में गूंज उठा। मैंने स्वर की दिशा में देखा। वो आवाज ठीक सामने से खिड़की पर से आ रही थी।
"तुम हमारी खैरियत की बात छोड़ो। अगर तुम्हारी सरकार ने हमारी बात नहीं मानी तो हम इन लोगों को एक-एक करके मारकर खिड़की से फेंकना शुरू कर देंगे।"
"इस तरीके से मजलूमों का खून बहाकर तुम लोग अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकते।" एस०पी० ने फिर उन्हें चेतावनी दी, "तुम घिर चुके हो। तुम्हारी भलाई इसी में है, तुम सब सरेण्डर कर दो और खुद को हमारे हवाले कर दो।"
"हा-हा-हा!" भयंकर अट्टहास गूंजा—— "हमारी भलाई किसमें है एस०पी०, ये हमे मत सिखाओ। हम अपने साथियों को छुड़ाने आए हैं, छुड़ाकर ही शान से यहाँ से निकलेंगे। तुम लोगों ने अगर हमारे रास्ते में आने या कोई एक्शन लेने की जरा भी हिमाकत की तो इन सबकी मौत के जिम्मेदार तुम खूब होगे।"
मैं एस०पी० के पास खड़ी उस सारे दृश्य का बारीकी से अवलोकन कर रही थी।
बिल्डिंग के चारों तरफ खड़े कांस्टेबल्स अपनी बन्दूकों को ताने मुस्तैदी के साथ खड़े थे। एकदम सतर्क! एक भी आतंकवादी मुझे बाहर खड़ा नजर नहीं आया।
"एस०पी० साहब।" मैंने एस०पी० को पुकारा
मेरी आवाज सुनकर ही पहली बार उसका ध्यान मेरी ओर खिंचा था।
"ओह! रीमा जी——।"
मुझे देखते ही वो कह उठा। वो मुझे अच्छी तरह जानता था इसी कारण मुझे देखते ही उसका चेहरा ताजे गुलाब की मानिन्द खिल उठा। उम्मीद के प्रकाश से उसकी आँखें पाँच-सौ वॉट के बल्ब की मानिन्द चमक उठीं।
वो उत्साहित लहजे में बोला—— "आप यहां कैसे?"
"इधर से गुजर रही थी।" मैंने बताया, "रास्ते में इसके बारे में पता चला तो मैं यहां आ गई।"
"ओह! आपने बहुत अच्छा किया रीमा जी।"
"हालात कैसे हैं?"
"अभी तक उन्हीं के काबू में हैं।"
"सिचुएशन?"
"इन लोगों ने पूरी बिल्डिंग के लोगों को सबसे ऊपर वाले पोर्शन में इकट्ठा कर रखा है।" उसने जानकारी दी—— "वैसे इन लोगों ने हर हिस्से में अपने आदमी तैनात कर रखे हैं। ज्यादातर लोग उसी हिस्से में हैं जिसमें उन्होंने बिल्डिंग के लोगों को कैद कर रखा है।"
"किस संगठन से हैं ये?"
"हिजबुल मुजाहिद से।"
"हिजबुल मुजाहिद से?"
"यस मैडम।" उसने बताया—— "महीना भर पहले हमने उसी संगठन के लोगों को गिरफ्तार किया था। उनमें से एक इनका प्रमुख आदमी वसीम कुरैशी है।"
"वसीम कुरैशी!" मेरा संगमरमरी मुखड़ा कठोर होकर खुरदरा होता चला गया। वसीम कुरैशी!
ये हिजबुल मुजाहिद संगठन का एक दुर्दान्त आतंकवादी था। जेहाद के नाम पर जिसने जाने कितने लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। जाने कितने मासूमों को कुचल डाला। जाने कितने मजलूमों को अपनी दरिन्दगी का शिकार बनाया।
ऐसे जालिम, संगदिल, दुर्दान्त हत्यारे का नाम तक सुनकर मेरा वजूद सुलग उठता है। वे उसी की आजादी के लिए यहाँ आए थे। उसी कातिल इंसान की रिहाई की खातिर वे उन मजलूमों की बलि देना चाहते थे।"
"इस बिल्डिंग को इन्होंने कब अपने कब्जे में लिया?" मैंने सुलगते स्वर में पूछा।
"अब से दो घन्टे पहले, तीन जिप्सियों में ये यहाँ पर आए थे।" एस०पी० ने बताया, "आते ही इन्होंने पहले गेटमैन को उड़ाया। फिर अन्दर जाकर लिफ्टमैन को कत्ल किया, और पूरी बिल्डिंग को अपने कब्जे में ले लिया।"
"वे लाशें?"
"उन्हें ये हमें दे चुके हैं।"
"किस तरीके से?"
"इनके दो आदमी खुद उन लाशों को गेट से बाहर फेंक गए थे। हमने वे लाशें थाने भेज दी हैं।"
मेरा दिमाग तेजी से काम करने लगा।
जैसा कि मेरे मेहरबान पाठक जानते ही हैं कि इस प्रकार की परिस्थिति में मेरा दिमाग राजधानी एक्सप्रेस से भी तेज गति से भागने लगता है।
मैंने अपना स्थान छोड़ दिया।
उस बिल्डिंग में ऐन्टर करने के लिए सबसे पहली मेरी जरूरत उस कमजोर हिस्से के बारे में जानकारी होना थी जिसके रास्ते से मैं अन्दर दाखिल हो सकती थी।
सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि उस बिल्डिंग में तैनात एक भी आतंकवादी सामने नहीं खड़ा था। सभी खिड़कियां बन्द थीं। केवल एक खिड़की थी, जो खुली थी। उसी में से खड़ा होकर उनका मुखिया एस०पी० से बातें कर रहा था।
मैं अन्दर जाने का रास्ता खोज ही रही थी कि उसी वक्त मेरी गहरी आँखों में उम्मीद की एक किरन चमक उठी।
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