बिन दुल्हन सेज
राजन ने अचानक ही अपनी गाड़ी को ब्रेक लगा दिये। गाड़ी के टायर कुछ दूर तक घिसटते चले गये तथा कुछ दूरी पर वह झटके के साथ रुक गयी।
उसने खिड़की से बाहर झांककर देखा।
सब कुछ सुनसान था, उस सुनसान जगह पर कोई आवाज नहीं थी, चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था। कहीं कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था।
हालांकि दिन का समय था। मगर यह ऐसा सुनसान स्थान था कि दिन के समय में भी डर लगता था।
पीछे ‘धीरे चलो’ का बोर्ड लगा था। क्योंकि आगे एक कमजोर पुलिया थी।
जब उसकी गाड़ी पुलिया के ऊपर से गुजर रही थी तो उसने किसी की चीख सुनी थी।
यदि उसकी गाड़ी तेजी से दौड़ रही होती तो इन्जन की घरघराहट में यह चीख सुनाई देना सम्भव नहीं था। मगर उस समय इन्जन की आवाज ना के बराबर थी, इसलिये उसे यह चीख सुनाई दे रही थी।
मगर इस समय सब कुछ शान्त और सुनसान था। कहीं कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।
कुछ पल तक राजन दोबारा उस चीख को सुनने का प्रयास करता रहा और जब उसे दोबारा वह चीख सुनाई नहीं दी तो उसने सोचा कि शायद उसे यूं ही धोखा लग गया होगा।
यदि वास्तव में ही कोई बात होती तो उसकी प्रतिक्रिया उसे अवश्य दिखाई पड़ती।
मगर कहीं ऐसा कुछ भी प्रतीत नहीं हो रहा था।
शायद उसे वहम हो गया था।
गाड़ी का इंजन पहले ही बन्द हो गया था।
यही सोचकर वह अपनी गाड़ी का इंजन फिर से स्टार्ट करने लगा।
मगर जैसे ही चाबी की ओर उसने दोबारा हाथ बढ़ाया तो उसके हाथ कंपकंपा कर रह गये।
“बचाओ....।”
यह चीख उसे दोबारा फिर सुनाई दी। उसके हाथ थम गये। वह चाबी घुमा नहीं सका।
यह किसी नारी की चीख थी। इसका अनुमान राजन ने स्वयं ही लगा लिया था।
राजन उसी पल गाड़ी का दरवाजा खोलकर गाड़ी से बाहर निकल आया।
मगर अभी तक वह यह अनुमान नहीं लगा सका था कि यह चीख किस ओर से आयी थी। हालांकि उसने यह अनुमान लगा लिया था कि यह चीख कहीं करीब से ही आयी थी।
उसने इधर-उधर देखा।
राजन बहुत ही दुःसाहसी युवक था। उसने जरा भी यह नहीं सोचा कि यहाँ वह स्वयं भी किसी बड़े खतरे में फंस सकता है।
“कोई बचाओ मुझे....।” उसने फिर वही नारी स्वर सुना।
इस बार राजन ने यह अनुमान लगा लिया कि यह चीख कहाँ से आ रही थी।
उसने पलट कर उधर देखा।
पुल के दूसरी ओर जहाँ घनी झाड़ियाँ थीं वहीं से वह चीख सुनाई दी थी। उसने देखा कि उधर से झाड़ियाँ हिल रही थीं।
राजन तेजी से उस ओर ही लपका।
सड़क के दूसरी ओर उसने देखा कि एक टैक्सी भी खड़ी थी। वह सड़क के नीचे गहरायी में थी इसीलिये राजन पहले उसे नहीं देख सका था।
उस समय राजन केवल इतना ही समझ सका था कि किसी नारी का जीवन या उसकी लाज संकट में है। यह सोचने का तो उसे जैसे अवसर ही नहीं मिला था कि आगे क्या स्थिति हो सकती है? वह स्वयं भी किसी संकट में पड़ सकता है।
उसे तो बस उस नारी के जीवन की चिन्ता थी।
और उधर....
वे तीन थे।
इंसानों के रूप में शैतान।
और वह खूबसूरत युवती उन तीनों शैतानों के बीच में फंसी हुई छटपटा रही थी।
उन शैतानों पर वासना का भूत सवार हो रहा था। और वे मानों उस खूबसूरत युवती के जिस्म को नोच डालना चाहते थे। उसके जीवन का एक-एक अंग उनकी वासना की भूख को भड़का रहा था।
वासना का यह नशा उनके ऊपर पागलपन की सीमा तक पहुँच चुका था। वासना के नशे में वे सब कुछ भूल गये थे। उन्हें कुछ भी ख्याल नहीं रह गया था।
और उन तीनों जालिमों के बीच में फंसी हुई उस युवती को लग रहा था जैसे वह उन शैतानों से अपनी लाज की रक्षा नहीं कर पायेगी।
मगर फिर भी वह अपनी पूरी शक्ति से उनका विरोध कर रही थी।
शायद इसीलिये उनको यह वहम दूर हो गया कि उनका अपने इरादों में सफल होना इतना आसान नहीं हो सकता। वे तीनों भी अभी तक उस युवती पर काबू पाने में सफल नहीं हो पा रहे थे।
मगर वह बेचारी आखिर कब तक उन शैतानों का मुकाबला कर सकती थी।
वह अपनी सहायता के लिये चीख रही थी।
मगर उसे आशा नहीं थी कि इस सुनसान जगह पर उसकी मदद के लिए कोई आ सकता है।
“बचाओ....।” वह चीखी।
“यहाँ तुम्हें कौन बचाने आयेगा मेरी जान....अब तो बस हम ही तुम्हें बचा सकते हैं।” उनमें से एक ने अपने भद्दे दांत निकालते हुए कहा।
जैसे उस खूबसूरत युवती के यौवन को देखकर उसके मुंह में पानी आ रहा था।
“मैं कहती हूँ छोड़ दो मुझे कुत्तों....।”
“जरूर छोड़े देंगे मेरी बुलबुल....मगर छोड़ने से पहले तुम्हारे इस खूबसूरत यौवन के नशे में पाप तो करेंगे ही।”
“कमीनों.... कुत्तों....मैं तुम्हारा खून पी जाऊँगी....।” उसने चीखते हुए कहा।
मगर इस पर उन शैतानों के होठों पर भद्दी विषैली मुस्कुराहट आ गयी थी।
उनमें से एक ने आगे बढ़कर उस युवती को अपनी बांहों में भर लेना चाहा। उस युवती ने उससे बचने की बहुत कोशिश की मगर वह उलझकर गिर पड़ी।
और इससे पहले कि वह सम्भल कर उठ पाती, उनमें से एक ने उसे अपनी बांहों में भर लिया।
वह युवती उसकी बांहों में छटपटाई। मगर उसके गिर्द बांहों का घेरा इतना सख्त था कि वह छटपटा कर रह गयी। वह अपने आपको इस घेरे से मुक्त नहीं कर सकी।
और जब उसका कोई वश नहीं चला तो उसने उस शैतान के कंधे पर अपने दांत गड़ा दिये।
उस युवती के ऐसा करने पर वह व्यक्ति बिलबिला कर रह गया। उसके मुंह से दर्द के मारे सीत्कार निकल गयी और उसी समय उसकी बांहों का घेरा स्वतः ही ढीला पड़ गया।
मगर वह आखिर कब तक और किस-किससे अपने आपको बचा सकती थी।
वह अपने आपको उस व्यक्ति की बांहों के घेरे से मुक्त कर सकी तो दूसरे ने अपनी बांहों में भर लिया।
“कुत्तों....कमीनों....हरामजादों....छोड़ दो मुझे....मैंने आखिर तुम्हारा क्या बिगाड़ा है—?” वह युवती चीखते हुए मगर कमजोर स्वर में बोली।
उसकी आँखों में आंसू भर आये थे। और यह आंसू शायद उस खूबसूरत युवती की बेबसी के थे। मगर उनके ऊपर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
वे तो इन्सानों के रूप में जैसे साक्षात हैवान थे और उन पर पूरी तरह से हैवानियत सवार थी। वे उस बेबस युवती की बेबसी को भला कहां सोच सकते थे। वे तो उसकी इस बेबसी का भरपूर फायदा उठाना चाहते थे।
इसी कशमकश में उसी युवती के बदन के कपड़े काफी अस्त-व्यस्त हो गये थे। जिनके कारण यौवन के कोमल अंग वस्त्रों से बाहर झांकने लगे थे।
और यह सच था कि उसके यौवन का एक-एक उभार किसी भी पुरुष को पागल बनाने के लिये काफी था।
मगर वह अपनी लाज बचाने के लिए उनका पूरा विरोध कर रही थी। जबकि वह जानती थी कि उन तीनों के सामने उसका कोई भी वश नहीं चल सकेगा।
आखिर कब तक वह उन शैतानों का मुकाबला करती रहेगी। वे तो उसकी लाज लूट ही लेंगे।
मगर यह सब जानते हुए भी वह अपनी पूरी शक्ति से उनका विरोध कर रही थी।
न जाने उसमें कहां से इतनी शक्ति आ गयी थी कि उसने अभी तक उन्हें उनके इरादों में सफल नहीं होने दिया था।
मगर कब तक!
वह युवती चीख रही थी—चिल्ला रही थी। अपनी मदद के लिये, मगर उसका विरोध कमजोर पड़ता जा रहा था। शायद अब न तो उसके अन्दर इतनी शक्ति रह गई थी और न ही उसे यह आशा रह गई थी कि वह इन जालिमों से अपनी लाज बचा सकेगी।
मगर फिर भी वह विरोध तो कर ही रही थी।
और उसके विरोध के कमजोर पड़ने के कारण वे शैतान उसके ऊपर हावी होते जा रहे थे।
“बचाओ....कोई बचाओ....मुझे....।”
“अब यहाँ तुम्हें बचाने कौन आयेगा मेरी जान....इस सुनसान जगह पर तुम्हारी बात सुनने कौन आ रहा है। अच्छा तो यही रहेगा कि तुम चुपचाप हमारी बात मान लो। इस भरपूर जवानी का हमारी तरह तुम भी भरपूर आनन्द उठाओ। तुम्हें भी पता चल जायेगा कि जवानी क्या है।”
“नहीं।”
“तुम बेकार में चीख-चीखकर अपना गला खराब कर रही हो।”
“कुत्तों-कमीनों....तुम इस तरह मेरी इज्जत नहीं लूट सकते।”
“हम तुम्हारी इज्जत लूट नहीं रहे मेरी जान....तुम्हें सिखा रहे हैं कि इस भरपूर जवानी का मजा क्या है?”
“नहीं....इससे तो अच्छा होगा कि तुम मेरी जान ले लो। मुझे जान से मार डालो... मगर मेरी इज्जत मत लूटो।”
“नहीं मेरी जान....तुम्हें मारने का साहस कौन कर सकता है? तुम चाहो तो अपनी नजरों का तीर चलाकर किसी को भी घायल कर सकती हो।”
“हरामजादों—।”
मगर अब तक वे तीनों उस युवती पर पूरी तरह हावी हो चुके थे।
वे उसके बदन से उसके वस्त्र अलग करने का प्रयास कर रहे थे। वह अब भी विरोध कर रही थी मगर उसके विरोध में अब जैसे कोई शक्ति नहीं रह गई थी।
उस युवती को भी अब जैसे कोई आशा नहीं रह गयी थी कि वह अपनी लाज की रक्षा कर सकेगी।
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