आओ सजना खेलें खून-खून
गौरी पण्डित
“पंडित जी, पता नहीं क्या होगा इस देश का...?” सामने बैठा पचास वर्षीय सांवले रंग का आदमी रामचन्द्र चड्ढा बोला— “हर रोज कहीं न कहीं बम फट जाता है...जान और माल का नुकसान तो हो ही रहा है, साथ ही मुल्क की आबोहवा में दहशत और नफरत का जहर घुलता चला जा रहा है...पता नहीं कब तक चलेगा यह सब?”
रामचन्द्र चड्ढा के सामने सोफे पर बैठा गोरा चिट्टा सुनहरे बालों वाला, झील सी नीली आंखों वाला दिमाग का जादूगर चाय का सिप लेकर गंभीरता से बोला— “चड्ढा भाई, ये आतंकवाद असल में धार्मिक मसला नहीं है...दरअसल ये पॉलिटिकल मसला है...जब किसी इंसान में सत्ता सुख की लालसा जाग जाए...जब वह दुनिया में सुपीरियर व ताकतवर बनने का सपना पालने लगे तो अपना सपना पूरा करने के लिए वो लोगों की भावनाओं का इस्तेमाल करना शुरू कर देता है...ये एक पुराना सच है कि लोगों ने सत्ता हासिल करने के लिए खून ही बहाया है...इस सबसे जो भी नुकसान होता है, वो बस साधारण लोगों का ही होता है...घर बरबाद होते हैं साधारण लोगों के...जान जाती है साधारण लोगों की ही...बेटा-बाप मरता है मजलूम जनता का...अनाथ होते हैं वो मासूम बच्चे, जिन्हें सत्ता शब्द का मतलब तक नहीं पता होता।
ये धार्मिक लोग मासूम व भोले-भाले लोगों को धर्म के नाम पर भड़काते हैं...उन्हें सिखलातें हैं कि अगर वह लोग धर्म के नाम पर जान देंगे तो उन्हें जन्नत नसीब होगी। धरती पर ही उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा और लोग उनकी इबादत किया करेंगे...जन्नत में जाकर हूरें उन्हें प्यार करेंगी...वह जो चाहेंगे उन्हें वो मिलेगा...इस जहान से भी ज्यादा सुख उन्हें दूसरे जहान में मिलेगा...अल्लाह का भी सबसे प्यारा बेटा बन जायेगा वह...।”
“हां...ये तो है।” रामचन्द्र चड्ढा चाय का सिप लेकर बोला — “अगर ये सब सुख-सुविधायें शहीद होने पर मिलने वाली हैं तो फिर वह धर्मगुरू क्यों खुद शहीद होकर खुदा का प्यार नहीं पाते...खुद वह शहीद होकर क्यों नहीं लिखवा लेते सवर्ण अक्षरों में अपना नाम?”
“इसी धार्मिक आतंकवाद का पूरा फायदा अमेरिका और चीन जैसे देश उठाते हैं।” केशव पण्डित कहता चला गया— “चड्ढा भाई, तुम रोज तो खबरें पढ़ते ही रहते हो ना...जितने भी हथियार होते हैं, या तो चीन के बने होते हैं या अमेरिका ही तो है...अस्सी के दशक में उसने ही रूस के खिलाफ आतंकवाद नामक भस्मासुर को पैदा किया था...वही भस्मासुर जब अमेरिका को ही तबाह करने पर उतर आया तो अमेरिका आतंकवाद की दुहाई दे रहा है...अब उसे याद आ रहा है वो मंजर जिसमें उसके वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर की तबाही थी...उसके देश में धमाके हुए तो उसके कानों में लोगों की चीखें पहुंचने लगीं...अब वह दुनिया के तमाम देशों से आतंकवाद को रोकने की अपील करने लगा...अब वही आतंकवाद उसे शैतान दिखाई देने लगा, जिसे उसी की खुफिया एजेन्सी ने लोगों को संहार करने की ट्रेनिंग दी थी।”
“ये भी सच है...।” कहते-कहते ठिठक गया रामचन्द्र चड्ढा।
उसकी नजर सामने चलते टी.वी. की स्क्रीन पर गई तो बेसाख्ता ही उसके मुंह से फट पड़ा— “अरे...।”
हैरानी की वजह से उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं।
टी.वी. जो कि उस समय धीमी आवाज में चल रहा था, उसकी स्क्रीन पर मार-काट के दृश्य उभर रहे थे।
लोग जैसे इंसानों से नरभक्षी जानवर बन गए थे। एक-दूसरे को यूं मार-काट रहे थे जैसे इंसान न होकर गाजर-मूली हों।
उसी पल...।
सारे जहां से अच्छा...। हिन्दोस्तां हमारा हमारा...वाली धुन वहां पर गूंजने लगी तो केशव पण्डित का ध्यान अपने नीले रंग के सफारी सूट की जेब में बजते अपने मोबाईल फोन की तरफ गया।
उसने अपनी जेब से मोबाईल निकालकर स्क्रीन पर नजर डाली तो स्क्रीन पर खुश्बू का नाम लिखा नजर आया।
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खुश्बू...आशीर्वाद की प्रेमिका।
केशव पण्डित की भवें सोचने वाले अंदाज में सिकुड़ीं। उसने फोन का रिसीवर वाला बटन दबाकर फोन कान से लगाकर कहा— “हैलो...।”
“हैलो डैडी जी...।” स्वर आशीर्वाद का था। बेहद उद्वेलित था उसका लहजा उस समय— “आप कहां हो इस समय?”
“चड्ढा भाई के घर पर हूं।”
“यानि घर से दो किलोमीटर दूर।” बोला आशीर्वाद— “मैं घर की तरफ जा रहा हूं...मम्मी जी और आंटी जी इस समय घर पर अकेली होंगी...डैडी जी, शहर में साम्प्रदायिक दंगा हो गया है...लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं...लोग दूसरे सम्प्रदायों के घरों में घुसकर लूटपाट कर रहे हैं और मार-काट मचा रहे हैं...आप इस समय जहां हों, वहीं पर रहना डैडी जी।”
“खुश्बू भी तुम्हारे साथ ही है ना?”
“हां डैडी जी...।” आशीर्वाद ने बताया— “हम दोनों एक रेस्टोरेंट में चिल-आउट कर रहे थे, तभी हमें खबर लगी...मैं खुश्बू को भी अपने साथ घर ही लेकर जा रहा हूं...मेरे फोन की बैटरी वीक हो गई थी, इसी वजह से उसके फोन से आपको कॉल की है।”
“मैं भी बस आ रहा हूं।” केशव पण्डित तत्काल उठ खड़ा हुआ— “मैं घर पहुंच रहा हूं...तुम खुश्बू का ख्याल रखना और संभालकर उसे घर लेकर आना।”
“आप फिक्र मत कीजिए डैडी जी...।” आशीर्वाद बोला— “मैं खुश्बू का पूरा ख्याल रखूंगा।”
केशव पण्डित ने तुरन्त मोबाईल को डिस्कनेक्ट कर दिया और रामचन्द्र चड्ढा से बोला— “अच्छा चड्ढा भाई, अब मैं चलता हूं...मेरा तुरन्त घर जाना जरूरी है...शहर में दंगे हो गए हैं...घर में सोफी और चांदनी अकेली हैं...आशीर्वाद भी इस समय घर में नहीं है...मेरा घर पहुंचना जरूरी है।”
रामचन्द्र चड्ढा कुछ कहना चाहता था, किन्तु केशव पण्डित ने उसे कुछ भी कहने का मौका नहीं दिया। वह तुरन्त ही ड्राइंग रूम से बाहर निकल गया।
रामचन्द्र चड्ढा।
बुरी तरह से परेशान और दुःखी बुदबुदाया— “हे भगवान! मेरे दोस्त केशव पण्डित व उसके परिवार की रक्षा करना...।”
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